हम और ये जहां
देखे कई दिन रात मैंने ढलते और गुज़रते
मेरी ज़िंदगी के वो भी हस्ते हस्ते
एक चीज़ ही तो सीखी और सिखाई है
मुस्कुराओ चाहे कभी खुद पे शामत ही आई है ।।
कई ठोकरे खाई इस अनचाहे से रास्ते पे
खड़े हुए और मुस्काए क्या हर्ज है हंसने में
हस्ते देखा है कई अपनों को...
मेरी ज़िंदगी के वो भी हस्ते हस्ते
एक चीज़ ही तो सीखी और सिखाई है
मुस्कुराओ चाहे कभी खुद पे शामत ही आई है ।।
कई ठोकरे खाई इस अनचाहे से रास्ते पे
खड़े हुए और मुस्काए क्या हर्ज है हंसने में
हस्ते देखा है कई अपनों को...