...

0 views

झुठलाई नज़्म
अगर कहीं मिल जाएँ तो
तुम यह कह देना उनसे
धूल-ए-हयात से सनी मेरी सूरत
तो अब उनको रास नहीं आती

तुम्ही कृपया यह कहना उनसे
कि जीवन रुकावट कुछ भी नहीं है
शोर ध्वनियों से पके कानों को
चाहत-ए-आहट कुछ भी नहीं है।

क्योंकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है
तितलियों के परों को सुनकर
मैं अकस्मात् ठहर जाता हों
रंग बन ढल शाम-ए-महफ़िल में
मैं अनायास सहर जाता हों

नन्ही बच्ची कि नन्ही उँगलियाँ
जब भी मुझे झटकती हैं
नन्हे पॉंवों में नन्ही बैंजनियाँ
जब प्रेम वश मटकती हैं
ऐसे नाज़ुक पलों में मुझको
एक कल्पित भयिष्य की याद
कभी भी नहीं सताती है
दुनिया अधिकार जताती है।

पत्तों पे फिसलती ओस देखकर
रुख-ए-रेशम की याद आती हो
ऐसा तो हरगिज़ नहीं है
जाड़ों में मीठी धूप सेककर
जिस्म-ए-उषा व्याध लाती हो
ऐसा भी तो नहीं है
पथ भ्रमित राहगीरों से मिलकर
मैं अक्सर ठिठक जाता हूँ
परन्तु इसमें उनका कोई दोष नहीं है
दिया हूँ, परवानों से मिलकर
में यूँ ही बहक जाता हूँ
मुझे उनसे कोई रोष नहीं है।

गर में इंसां होता तो शायद
दिल-ए-तन्हाई मेरे पास होती
बोझ-ए-ग़म उठाते कन्धों को
उन गेसू-ए-अक्स की आस होती
पर वे सही पहचान गए थे
इस दया उमड़ती छाती के भीतर
एक निर्जीव पत्थर धड़कता है
उनके ब्याह निमंत्रण से जिसपे
रत्ती भर फ़र्क़ नहीं पड़ता है।

मेरी बिनती तुमसे उनको समझाना
माथे पर कोई बल न सहेजें
कोई रहस्य नहीं मेरी आहों में,
मचलते जी को परदेस भेजें
प्रसन्न रहें पिया की बाहों में

उनसे कहना निश्चिन्त हो जाएँ
लज़्ज़त-ए-खत मेरे पास है, जिसका
किसी जीव को दीदार न होगा
पत्थर कहती हो, उस दिल को
कभी किसी से प्यार न होगा ।।


© AbhinavUpadhyayPoet