...

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क्यों चुप थे पिताजी
चूप थे पिताजी....
जब कई सवाल से घेरे थे
क्यों दोस्तों से दूर रखते हो?
क्यों स्कूल ट्रिप जाने नही देते हो?
क्यों मुझे भी पार्टी करने नही देते हो?
बिना बोले आंखों से कहते फिर छुप थे पिताजी

जब पिता बनकर
पता चला क्यों चूप थे पिताजी
दोस्ती एक जाल ऐसा उम्र भर न निभा पाए,मिलता धोखा है..
अकेले कैसे जाने दू अनहोनी को होते देखा है...
पार्टियो में न जाने कौन कौन देखे,मान ले चरित्र पर कलंक की रेखा है
मैं समझ नही पाऊंगा पता था
इसलिए चूप थे पिताजी

चूप थे पिताजी
जब भी डरता था,अंधेरों से
जब भी घबराता था, लुटेरों से
जब भी अकेला में रोता था
जब भी बिना गलती मुझे कोसा जाता था
बिना समझे मुझे चुप कराते थे
न जाने क्यों चुप थे पिताजी

पिता बनकर मुझे पता चला
जीवन में हर डर से अकेले लड़ना है
जीवन में लूटने वाले हजारों मिलेंगे,खुद की इज्जत खुद ही बचाना है।
अकेले रोने से हिम्मत बढ़ती है,औरों के सामने आंसू हमे कमजोर बनाते है...