BETI KE MNN KI VYATHA..
'एक बात मुझे जंचती ही नहीं "
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एक बात मुझे जचती ही नहीं
बेटी माँ को इंसान सी लगती भी कि नहीं
घर में रखती है कटर बन पहरो में ऐसे
फिर एक दिन उसको खुद से अलग कर देती है कैसे
ये बात मुझे सही लगती ही नहीं
माँ बेटी कोनाज़ों से पाला करती है
जब ब्याह उसका रचा ती है
तब कुछ ऐसी शिक्षा देती है
धूपबत्ती सी बनकर रहना
खुद जलना पर घर महका देना
वो ऐसा कैसे कहती है !
क्या बेटीहाड मांस का टुकड़ा है !
जिसमे कोई अहसास नहीं
जब उसकी बलि चढानी थी
तो नाज़ो से पाला क्यों था?
एक बात मुझे अक्सर चुभती
क्या माँ के घर बेटी बोझ सी है?
हर शिक्षा उसको देती है माँ
सर्वगुण संपन्न बना ती है मां
तब क्यों लड़के की माँ तन जाती है
और माँ लड़की की झुक जाती है
वह क्यों गर्व से कह नहीं पाती
मैं अपनी अनमोल पूँजी सौंप रही
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एक बात मुझे जचती ही नहीं
बेटी माँ को इंसान सी लगती भी कि नहीं
घर में रखती है कटर बन पहरो में ऐसे
फिर एक दिन उसको खुद से अलग कर देती है कैसे
ये बात मुझे सही लगती ही नहीं
माँ बेटी कोनाज़ों से पाला करती है
जब ब्याह उसका रचा ती है
तब कुछ ऐसी शिक्षा देती है
धूपबत्ती सी बनकर रहना
खुद जलना पर घर महका देना
वो ऐसा कैसे कहती है !
क्या बेटीहाड मांस का टुकड़ा है !
जिसमे कोई अहसास नहीं
जब उसकी बलि चढानी थी
तो नाज़ो से पाला क्यों था?
एक बात मुझे अक्सर चुभती
क्या माँ के घर बेटी बोझ सी है?
हर शिक्षा उसको देती है माँ
सर्वगुण संपन्न बना ती है मां
तब क्यों लड़के की माँ तन जाती है
और माँ लड़की की झुक जाती है
वह क्यों गर्व से कह नहीं पाती
मैं अपनी अनमोल पूँजी सौंप रही