...

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रात भर
एक अजनबी तस्वीर सताती रही रात भर !
बातें उनसे की हुई याद आती रही रात भर !

थक कर चिराग़ सो गया पहले पहर ही मगर
लौ शमां- ए-आरज़ू जगमगाती रही रात भर !

तन्हा, सर्द रात में हैं, दिल की धड़कनें बढ़ीं
ख़ुद को इसी झूठ से बहलाती रही रात भर !

एक मैं थी और बस नज़दीक थी ख़ामोशियांँ
फिर सदाएं कौन- सी, जगाती रही रात भर !

इक दिलनशीं के बस तसव्वुर की ख़ातिर
मैं ख़ुद ही नींदें चश्म से चुराती रही रात भर !
© parastish

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