...

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फितरत
सब फितरत का खेल है जनाब

इंसान वाकई में कितना बदल जाता है

बुराई करके तो कोसा जाता है

भलाई करके भी गलत समझा जाता है।।

इंसान खुद को पता नी क्या समझ जाता है।।

चंद दिन का तो मेहमान है ये,,

पता नी खुद को खुदा समझ जाता है।।