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वक्त मिला तो सोचेंगे ...
ख़ुदा मान मैंने इबादत की थी उसकी
बदले में चंद लम्हे साथ मांगे थे..
उसने पैगाम भेजा है.. वक्त मिला तो सोचेंगे

उसके दीदार की उम्मीद रखी थी मैंने
ख्वाहिश बस उसे देखने की थी...
उसने पैगाम भेजा है.. वक्त मिला तो सोचेंगे

वफ़ा की राह पर चलकर भी मैं नाकाम हुई
कर दूर शिकायतें मैंने उसे सूनने की चाह रखी थी...
उसने पैगाम भेजा है.. वक्त मिला तो सोचेंगे

उसकी बेवफाई में शिद्दत देखी थी मैंने
उसी शिद्दत से मुझे अलविदा कहने की नुमाइश की थी...
उसने पैगाम भेजा है.. वक्त मिला तो सोचेंगे.......


अपनी तन्हाई के आलम में बैठी थी मैं
दिल की तमन्ना थी कि याद आये उसकी...
पर यादों ने कहा... हमें भी वक्त मिला तो सोचेंगे ...



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