...

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मन
बना मन पगडंडी,जाए जाने किस ओर ,
जहाँ घूमे चित चोर ,भागे उसी की ओर !

भटकता फिरे बन -बन और गली -गली ,
ना मिले हैं फिर कहीं कोई उसका छोर!

दिन बीतता ,रात की कालिमा जाती बढ़ ,
टोह न मिलती मन की,चाहे हो जाये भोर !

मन की गति पर कोई रोक नहीं है,
भागे बेमक़सद ,मिलती न कोई ठौर !!
© गुलमोहर