बेज़ारी
#लालसा_की_प्रतिध्वनि
ऐसा भी क्या बैर है मुझसे, क्यों इतना बेज़ार हुए हो
सारी बातें मैं ही बोलूँ, तुम क्यों पुर असरार हुए हो
कितना मैं तुमसे करता था, बातें नयी पुरानी सब कुछ
तुम भी मुझसे कर लेते थे, गुस्सा और मनमानी सब कुछ
कभी बहस भी हो जाती थी, इक दूजे से चिढ़ जाते थे
थोड़ा थोड़ा रूठ मनाकर, फिर से आगे बढ़ जाते थे
कितने अच्छे दिन होते थे, और रातें...
ऐसा भी क्या बैर है मुझसे, क्यों इतना बेज़ार हुए हो
सारी बातें मैं ही बोलूँ, तुम क्यों पुर असरार हुए हो
कितना मैं तुमसे करता था, बातें नयी पुरानी सब कुछ
तुम भी मुझसे कर लेते थे, गुस्सा और मनमानी सब कुछ
कभी बहस भी हो जाती थी, इक दूजे से चिढ़ जाते थे
थोड़ा थोड़ा रूठ मनाकर, फिर से आगे बढ़ जाते थे
कितने अच्छे दिन होते थे, और रातें...