...

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ले जाएगी ज़िन्दगी किस अंजाम तक
ले जायेगी ज़िन्दगी किस अंजाम तक
मिलती नहीं राहें मंज़िल के नाम पर,

सर्द सी ज़िन्दगी में धूप नहीं दिखती है
बारिश हो जाती है टूटे मकान पर,

चटक जाता है दिया टकरा कर हवाओ से
रोशनी को रखते है हम जिसे शाम तक,

ओ रात की चिरैया तुझे दाना कैसे दूँ
सारा दिन भटके हम तिनके के नाम पर!
© Shweta Rao