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मुझे भीड़ के साथ चलना अच्छा नहीं लगता...
यूँ देखा देखी राहें बदलना अच्छा नहीं लगता।
मुझे भीड़ के साथ चलना अच्छा नहीं लगता।।
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गिरने से पहले ही हरकत में आ जाऊं बेहतर है,
मुझे गिरने के बाद संभलना अच्छा नहीं लगता।।
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न रोज़गार है रहा न मैं मुलाज़िम रहा किसी का,
ख़ाम खां घर से निकलना अच्छा नहीं लगता।।
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ग़म की बारिशों में धुलते देखा है हुस्न चेहरे का,
अब तुम्हारा सजना संवरना अच्छा नहीं लगता।।
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आखिर कब तक मैं कसौटी पे ख़रा उतरता रहूं,
मुझको हमेशा तेरा परखना अच्छा नहीं लगता।।
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तुम्हें अपनी कीमत बढ़ाने के लिए मेरी ज़रूरत है,
तेरा "सिफ़र" को आगे रखना अच्छा नहीं लगता।।
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© संजय सिफ़र
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