...

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॥परछाई॥
अंधेरी गलियों में
भटक रहा था
अनिश्चितता में
चल रहा था
दिल ना जाने क्यूँ
बेचैन सा था
शायद अकेलेपन से
डर रहा था
तभी कुछ दूर
रोशनी आयी
अंधेरों से निकल
परछाई मुस्कुरायी
लगा जैसे कुछ
कह रही हो
अपने होने की
दस्तक दे रही हो
बोली, मैं कब
कहीं गयी थी
अंधेरों में हर तरफ़
मैं ही मैं थी
जाने क्यूँ खुद को
अकेला पाता है
तेरे हर कदम पर
मेरा कदम आता है
अंधेरा अब भी था
रास्ते सुनसान थे
भटके मन में कहीं
अनिश्चिता थीं
पर अब बेचैनियाँ
कुछ कम थी, क्योंकि
क्षितिज तक मेरे संग
मेरी परछाई थी!
- @abhi_0501