मैं लौट आई हूं अपने घर
बिखरे हुए ख़्वाब
बिखरी ख्वाहिशों को
ले कर
मैं लौट आई हूं अपने घर।
बहुत दर्द तकलीफे
ग़मगीन मौहोल से
छुप कर
मैं लौट आई हूं अपने घर।
कर के दफ़न बहुत राज़।
फिर जीना है खुलके आज।
ये आस लेकर
लौट आयी हूँ अपने घर।
भटकती रही दर दर।
न सुकून मिला
न शांति किधर।
देखी जब झांक कर,
अपने ही अंदर।
मिला आनंद का समंदर।
हां मैं लौट आई हूँ अपने घर।
© ओशिन
@Writco
#poem #Kavita #lifelesson
बिखरी ख्वाहिशों को
ले कर
मैं लौट आई हूं अपने घर।
बहुत दर्द तकलीफे
ग़मगीन मौहोल से
छुप कर
मैं लौट आई हूं अपने घर।
कर के दफ़न बहुत राज़।
फिर जीना है खुलके आज।
ये आस लेकर
लौट आयी हूँ अपने घर।
भटकती रही दर दर।
न सुकून मिला
न शांति किधर।
देखी जब झांक कर,
अपने ही अंदर।
मिला आनंद का समंदर।
हां मैं लौट आई हूँ अपने घर।
© ओशिन
@Writco
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