...

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हिकायत-ए-जान
हिकायत है उसके रुख्शत होने की और किसी के मौजूद होने की ,
और आगाज़ है पामाल होने के खनक की ,
ये मत सोचना मुजारद हो जाएंगे , "जान" अरसा बढ़ेगा तो कई दुकान ज़द में आएंगे ।

© saransh07