...

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आत्म सम्मान
गुम हो रहा अभिमान कही
जिंदगी किस मोड पर है आ रही...

आत्मसम्मान संभालते हुए
डगमगा रहे कदम
नही मिल पाई सोच
तो राह भी पड़ रही है कम

साथ कम हो रहा हर पल
गुम हो रहे रिश्ते कुछ ही पल
सभी व्यस्त हो रहे अपने में ही
समय भी नही बाकी किसी के लिए

दौलत नही बस साथ और अपनापन
पाना था जरुरी
पैसो से नही तो स्वार्थ से बढ़ रही है
रिश्तों में दुरी

रिश्ता संभलना भी लक्ष होगा अब
मनुष्य ने ही मनुष्यता ही खोई कब
वह खुद नही जान पाया ...

रिश्तों की मिठास तो नही रही
गुम हो रहा अभिमान कही

वक्त ने छोटे बड़े सभी के मायने बदल दिए ..
जिसने व्यक्ति को भी अब वस्तु बना दिए..

देखते ही देखते वक्त कितना बदल गया
हम ऐसे नही थे ये सोचने पर मजबुर हो गया

गुम हो रहा अभिमान कही
स्वाभिमान तो नाममात्र रह गया
चलती है सिर्फ उसकी अब...
जिसने दिल को भी पत्थर बना दिया


@pihu # writco ##