...

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तिश्नगी
इश्क़ कर के मुझे तिश्नगी आ गई,
हसरत-ए-दिल को बे-पर्दगी आ गई।

बे-ख़याली में दीवानगी आ गई,
चाहत-ए-दिल में आशुफ़्तगी आ गई।

रहता हूॅं आज-कल ख़ुद से ही बे-ख़बर,
यूँ मुहब्बत में वारफ़्तगी आ गई।

अब तलक सोए थे मेरे जज़्बात-ए-दिल,
जब हुआ प्यार तो, शो'लगी आ गई।

जानिब-ए-इश्क़ बहके हैं मेरे कदम,
बे-क़रारी में आसूदगी आ गई।

मेरी मंज़िल है अब तेरा ही शह्र-ए-दिल,
जान-ए-काफ़िर को दिल-दादगी आ गई।

एक बंजारे के जैसे फिरता है मन,
मेरे ख़्वाबों को आवारगी आ गई।

© Azaad khayaal

(2 1 2) (फ़ाइलुन) x 4
(तिश्नगी = प्यास)
(बे-पर्दगी = न छुपने की अवस्था)
(वारफ़्तगी = खोए रहने की हालत)
(शो'लगी = उत्तेजना)
(जानिब-ए-इश्क़ = प्यार की ओर)
(आसूदगी = संतोषी होने का भाव)
(दिल-दादगी = आसक्ति)
(आशुफ़्तगी = व्याकुलता)