...

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मैं हुं तेरे मेरे पास में
मैं हु तेरे पास में,
फिर भी क्यों जाने इतना भ्रमित सा हु,
ज्ञान को जानता भी हु समझता भी हु,
फिर भी इस काम-वासना में धंसा हुआ सा हु,
ये कर्मो का फेर है या फिर मेरी ही हठधर्मिता है।