चार दीयों की रौशनी
इतिहास की धारा में लिखी कहानी,
चार साहिबजादों की अमर कुरबानी।
ज़माना झुका जहां वीरों के आगे,
मोहलत ना मांगी, सिर भी उठा के।
साहिबजादों ने जो दिखाया है,
मौत से खेल के क्या सिखाया है।
साहस और धर्म का वो संदेश,
आज भी गूंजता है हर देश।
पंजाबी मिट्टी से उठी जो गाथा,
ज़ुल्मों के आगे झुका नहीं माथा।
साहिबजादा अजीत, जुझार के नाम,
शस्त्र उठाए, जलाए शमशान।
चोटें सहीं, पर तोड़ा न वचन,
हर सांस में था धर्म का जतन।
चमकौर की धरती पर खून बहाया,
पर...
चार साहिबजादों की अमर कुरबानी।
ज़माना झुका जहां वीरों के आगे,
मोहलत ना मांगी, सिर भी उठा के।
साहिबजादों ने जो दिखाया है,
मौत से खेल के क्या सिखाया है।
साहस और धर्म का वो संदेश,
आज भी गूंजता है हर देश।
पंजाबी मिट्टी से उठी जो गाथा,
ज़ुल्मों के आगे झुका नहीं माथा।
साहिबजादा अजीत, जुझार के नाम,
शस्त्र उठाए, जलाए शमशान।
चोटें सहीं, पर तोड़ा न वचन,
हर सांस में था धर्म का जतन।
चमकौर की धरती पर खून बहाया,
पर...