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भूख (अतुकांत कविता )
अक्सर ..
देखा गया है
कि पेट की भूख ,
रोटी के कुछ निवालों पर,
आकर सिमट जाना चाहती है....

मगर ,
सत्तासीन
व्यक्तियों की भूख का
आजतक कोई निश्चित मापदंड,
नहीं देखा गया है ...........

वो,
खा सकती है
अपने देश-प्रदेश को,
जनता का हक़,उनके सपने..
पूरी की पूरी सड़क,निर्माणाधीन पुल,
जानवरों का चारा, युवाओं का रोज़गार..
विभिन्न काग़ज़ी योजनाओं का पैसा...

किसी आम इंसान की संपत्ति,
उसकी ईमानदारी ,उसका मान -सम्मान,
किसी मजबूर स्त्री की देह और
कभी-कभी इंसानों की जान भी......!!!!!

© प्रिया 'ओमर '
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