विरक्त मन
मेरा प्रणाम
मेरा लेख पढ़ने
वालो को,
जिंदगी गुलज़ार है
क्षणिक जीवन समझने वाले को,
भाव में हूं,
आवेश में हूं,
कैसे बतलाऊ जिंदगी का सार!
जिंदगी विरक्त हैं !
मंजिलो कि है चाह!
भाग दौड़ जिंदगी में,
अपना भी नाम लिया है लिखवा,
मंजिलो से मिला दे!
आह ! मेरे मन
आह! मेरे मन
दृश्यता बनू या
दृश्य की आड़ करूं,
नारी हूं!
समग्रता को पहचानती हूं,
जिंदगी को उदेङने कि चाह है,
शाश्वता ही
मृदुल भाव है,
उत्पन्न हुआ कहा से
समग्र संसार,
आ रहा विग्रल भाव!
भय में भयावता भरी,
तड़पन है अंधकार का,
व्यर्थ है जीवन
विनय करता मन ,
आह ! मेरे मन
आह ! मेरे मन
सुनने वाला
होता कोई,
आवाज ये दिल की ,
जला लव कहां से!!
समापन की ओर उठा ,
ज्ञान से भी हुआ अज्ञान
मोह माया में,
फंसा है संसार समग्र,
अब आया है समझ!!
आह ! मेरे मन
आह ! मेरे मन
विरक्त हैं जीवन
समझ पाना है कठिन,
उक्त रोशनी का
बूझ जाना है,
कहना है कठिन,
आह ! मेरे मन
आह ! मेरे मन
अस्तुति करती हूं
जीवन के सार की,
उत्साह जानने की
मृदुल भाव की,
भाविष्य की चाह की,
आह ! मेरे मन
आह! मेरे मन
थी जब से खिली
संसार कि छांह में,
जिंदगी का क्या पता
था कट जाएगी,
सुख दुख के प्रभाव में
व्याकुल हूं तूझे पाने को,
हासिया बहुत कम है
हरी टहनियों से
पत्तों के गिर जाने की,
आह ! मेरे मन
आह ! मेरे मन
#jindagieksafar
#jindgieksfa
#jindagieksfar
© jindagi ek safar *D.y*
मेरा लेख पढ़ने
वालो को,
जिंदगी गुलज़ार है
क्षणिक जीवन समझने वाले को,
भाव में हूं,
आवेश में हूं,
कैसे बतलाऊ जिंदगी का सार!
जिंदगी विरक्त हैं !
मंजिलो कि है चाह!
भाग दौड़ जिंदगी में,
अपना भी नाम लिया है लिखवा,
मंजिलो से मिला दे!
आह ! मेरे मन
आह! मेरे मन
दृश्यता बनू या
दृश्य की आड़ करूं,
नारी हूं!
समग्रता को पहचानती हूं,
जिंदगी को उदेङने कि चाह है,
शाश्वता ही
मृदुल भाव है,
उत्पन्न हुआ कहा से
समग्र संसार,
आ रहा विग्रल भाव!
भय में भयावता भरी,
तड़पन है अंधकार का,
व्यर्थ है जीवन
विनय करता मन ,
आह ! मेरे मन
आह ! मेरे मन
सुनने वाला
होता कोई,
आवाज ये दिल की ,
जला लव कहां से!!
समापन की ओर उठा ,
ज्ञान से भी हुआ अज्ञान
मोह माया में,
फंसा है संसार समग्र,
अब आया है समझ!!
आह ! मेरे मन
आह ! मेरे मन
विरक्त हैं जीवन
समझ पाना है कठिन,
उक्त रोशनी का
बूझ जाना है,
कहना है कठिन,
आह ! मेरे मन
आह ! मेरे मन
अस्तुति करती हूं
जीवन के सार की,
उत्साह जानने की
मृदुल भाव की,
भाविष्य की चाह की,
आह ! मेरे मन
आह! मेरे मन
थी जब से खिली
संसार कि छांह में,
जिंदगी का क्या पता
था कट जाएगी,
सुख दुख के प्रभाव में
व्याकुल हूं तूझे पाने को,
हासिया बहुत कम है
हरी टहनियों से
पत्तों के गिर जाने की,
आह ! मेरे मन
आह ! मेरे मन
#jindagieksafar
#jindgieksfa
#jindagieksfar
© jindagi ek safar *D.y*