...

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मेघा... सुन लो
हे मेघा, हे वारिद जलधर, हे अंबुद विनती सुन लो
कब से प्यासी इस भूमि की, अब तो कुछ सुध लो..

मोर, पपीहा, चातक व्याकुल, व्याकुल सारे भूचर
वृक्ष वनस्पति सब हैं प्यासे अब करो कृपा अंबुधर...

नित - नित मरते जा रहे हैं प्राणी तपती गर्मी लू से
महका दो अब धरती को मिट्टी की सौंधी खुश्बु से...

इस तपती प्रचंड धरा पर, कुछ शीतलता तो आए
हर्ष मनाना तुम भी बादल, जब ये मोर पपीहे गाएं...

यही कहेंगे, सबकी विनती और ना अब तुम टालो
भूचर, नभचर, पादप सब को, खुशहाली दे डालो...

© Naveen Saraswat