रुक गया मेरा साँस
धरती में आया एक नया विचार लेकर,
एक नया सवेरा, नया उम्मीद रखकर,
देखा इस कुदरत को दोनों आंखे खोलकर,
भूल गया क्या विचार आया था में लेकर।
चाला में इस परिवार मे घुल-मिलकर,
वो पेड़ों की छाया में मेरा परेशानी रखकर,
पानी मे अपने पापों को धोकर,
निकला आगे शहर का नजारा देखने।
बड़ी-बड़ी इमारतें बनाया पेड़ों को काटकर,
बनाया नयी गाड़िय पशुओं का घर छीनकर,
पानी मे सारा विष मिलाकर,
जलायी सारे अच्छाई, स्वार्थी होकर।
रुख गया मेरा साँस ये देखकर,
मार गई उम्मीदें जो आया था में लेकर,
अचंभित इस परिस्थिति को सोचकर,
मार गया उस रूखे हुए साँस को छोड़कर।
© śmiech króla
एक नया सवेरा, नया उम्मीद रखकर,
देखा इस कुदरत को दोनों आंखे खोलकर,
भूल गया क्या विचार आया था में लेकर।
चाला में इस परिवार मे घुल-मिलकर,
वो पेड़ों की छाया में मेरा परेशानी रखकर,
पानी मे अपने पापों को धोकर,
निकला आगे शहर का नजारा देखने।
बड़ी-बड़ी इमारतें बनाया पेड़ों को काटकर,
बनाया नयी गाड़िय पशुओं का घर छीनकर,
पानी मे सारा विष मिलाकर,
जलायी सारे अच्छाई, स्वार्थी होकर।
रुख गया मेरा साँस ये देखकर,
मार गई उम्मीदें जो आया था में लेकर,
अचंभित इस परिस्थिति को सोचकर,
मार गया उस रूखे हुए साँस को छोड़कर।
© śmiech króla