...

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जमीं पर आ जाता है
जो खुशियां देता वही रुलाता है,
आज साथ फिर दूर चला जाता है;
वक्त की अजमाइशें बेहिसाब होती,
फिर सिरहाने रख यादों की पोटली,
सजाकर फूल व कांटों से लम्हों को,
दूरियों पर रोता और मुस्कुराता है।

बंदिशें नही; जितनी रुसवाई उसकी,
आज पास है फिर दूर चला जाता है,
बदलने की चाहत बेशुमार हैं उनकी,
आदतों में शामिल वो हमें कर जाता,
नम आंखों से महसूस कर उसे फिर,
उलझनों में उलझकर दिल हार जाता है।

रंगीनियाँ,नादानियां,बेचैनियां बेहिसाब,
करीब होना ख़ता; बताकर कहतें अब,
जलिमों की दुनिया बेमिसाल,लाजवाब,
हम भी आजाद अब वो भी आजाद हैं,
अहसासों की दुनिया घूमकर इंसान,
वापिस फिर अपने जमीं पर आ जाता है।


© नेहकिताब