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ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है।Gazal-e-Sagar
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है..
मेरे शरीर में मेरा दिल अभी भी कम ही है।
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है।

कैसे बताऊँ हाल-ए-दिल-दिल उस बेवफ़ा को मै,
अपने आंसूओ के सागर ख़ुद में हम ही है।
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है..
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है।

तेरी यादों को कैसे मै ख़ुद से रुसवा करूँ,
मेरी यादों की किताब अभी भी नम ही है।
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है..
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है।

बड़ा अजीब सा है ये एकतरफा मेरा प्यार,
मेरे नसीब में केवल और केवल ग़म ही है।
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है..
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है।

बड़ा ग़ुरूर था मुझको की सिर्फ वो मेरी है,
अब उसे अपना कहने का मुझमे ना दम ही है।
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है..
ना ही वो मुकम्मल हुए और ना हम ही है।


Gazal-e-Sagar
मेरी पहली हिंदी ग़ज़ल :- ग़ज़ल-ए-सागर

© अधूरे अल्फ़ाज़ों के शहंशाह - सागर राज गुप्ता