...

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दुनिया झूठ की
दुनिया झूठ की , झूठ का ही चहुँ ओर बोलबाला है ,
सत्य खड़ा कटघरे में , फ़रेब में लिप्त हुआ आला है।

ज़मीर बेच नवाब बने , ह्रदय कुटिलताओं से भरपूर है,
रिश्तों को ताक पर रख , मानुष लोभ के मद में चूर है।

अहम आत्मसात कर , झूठ की बाज़ार ही सजती है ,
सत्य गवाही दे रहा , फिर भी हर गली बोली लगती है।

रिश्तों की मधुरता खत्म होती ,झूठ ऐसा खेल रचाता है ,
स्वार्थ की चाशनी में डूबा हुआ , हर बन्दा प्यार जताता है।

सत्य टूटता बिखरता ज़ुरूर , पर ख़ाक कभी न हो सकता है ,
झूठ की चमक कितनी भी ही , एक दिन वही सिसकता है।

दुनिया झूठ की , झूठ के ही मकड़जाल भी नज़र आते हैं ,
कितनी भी कोशिश कर लो , निश्चल मन ही बिखर जाते हैं।
--@NURI (नैरिती)....💞💞