...

3 views

ग़ज़ल
२२१-१२२२//२२१-१२२२

कहते हो ग़ज़ल या है ये क़ाफ़िया-पैमाई
क्या रब्त है मिसरों में समझा दो मेरे भाई (१)

वो कौन है जिसने ये रीत ऐसी भी चलवाई
अपनों से अदावत है ग़ैरों से शनासाई (२)

माँगी थी मदद सबसे आया न कोई आगे
उस भीड़ में लोगों की तुम भी थे तमाशाई (३)

हैं फूल भी मुरझाये ग़ुंचे...