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कास तुम्हारी यादों से लिपट मैं सकता
कास तुम्हारी यादों से
लिपट मैं सकता
तो तुम्हें कभी नहीं
छुअन का ऐहसास दिलाता
कास तुम्हारी,,,,,,,,,
दिलचस्प इन निगाहों को
अगर मैं रोक पाता
तो कभी नहीं तेरी तरफ
यह नजरे उठाता
कास तुम्हारी,,,,,,,,,
झुक कर चले जाते
यू ईश्वर से आर जूं करता
कभी यूं लिपट कर तुमसे
सिसकने का मौका पाता
कास तुम्हारी,,,,,,,,,
राहे निगाहें और आत्मा को
नहीं इतना तड़पाता
जाने मन जाने जा
अगर तुमसे इतना प्यार ना होता
कास तुम्हारी,,,,,,,,,
संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar
लिपट मैं सकता
तो तुम्हें कभी नहीं
छुअन का ऐहसास दिलाता
कास तुम्हारी,,,,,,,,,
दिलचस्प इन निगाहों को
अगर मैं रोक पाता
तो कभी नहीं तेरी तरफ
यह नजरे उठाता
कास तुम्हारी,,,,,,,,,
झुक कर चले जाते
यू ईश्वर से आर जूं करता
कभी यूं लिपट कर तुमसे
सिसकने का मौका पाता
कास तुम्हारी,,,,,,,,,
राहे निगाहें और आत्मा को
नहीं इतना तड़पाता
जाने मन जाने जा
अगर तुमसे इतना प्यार ना होता
कास तुम्हारी,,,,,,,,,
संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar
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