...

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पांचाली!मत बांधना केशराशि।
छली गई हो
अनादि..अनन्त काल से
प्रेम-पराकष्ठा में..
कभी पत्थर बनकर प्रमाण देती हो,
तो कभी धरती तेरा मान बचाती है!!
पूछती हूँ
जवाब दोगी??
क्यों देती रही हो
प्रमाणों का कच्चा चिट्ठा??
क्यों समा जाती हो धरती में
क्यों विवश हो पत्थर बनने पर
क्यों जोहती हो राम की बाट!!
क्या इसलिए कि
आने वाली पीढ़ी चल सके
तुम्हारे पदचिन्हों पर!!
मैं धन्य कहती हूँ वैशाली!!
अबला भी बनी,असहाय भी बनी,
पर अबला असहाय तुम नहीं
वो मूक मंडल था..
जरूरत है आज को तुम्हारी
ओ पांचाली!!
ऐसे ही धोती रहना केश
अरि-रक्त-रंजित-सुसज्जित
पथप्रदर्शक हो तुम आज की नारी की!!
हे पांचाली!!
मत बाँधना ये केशराशि!!
मत बाँधना ये केशराशि!!

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© ©सीमा शर्मा 'असीम'