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गीत हमारे हस गुल्ले के गाल नहीं
हमारे गीत ..

गीत हमारे हसगुल्ले के गाल नहीं ।
सड़क छाप आवारों के ससुराल नहीं ।
ये बंदीजन के विरदावलि नृत्य नहीं ।
ये विशेष अनुकंपाओं के कृत्य नहीं ।।

जिस विचार के ग्राहक हों वह तर्ज नहीं ।
पर विवेक आधारित इसमें मर्ज नहीं ।
गीत हमारे स्वर हैं मूक दशाओं के ।
उपालंभ ये पीड़ाओं के घाओं के ।।

शब्द नहीं जनरंजन के डाले हमने ।
अर्थ नहीं परवसता के पाले हमने ।
गीत काव्य के विविध बोध का व्यंजन है।
वर्ण वर्ण इसमें साहित्य प्रसिंचन है।।

गीत हमारे क्लिष्ट किंतु मर्यादित हैं ।
जीवन दर्शन के स्वरूप आच्छादित हैं ।
ये उत्श्रृंख स्वभावों पर आक्रामक हैं ।
ये कुपंथ के गीत काव्य में भ्रामक हैं ।।

निष्ठाओं के हित में ये नचिकेता हैं ।
सृजन साध्य के लिए स्वतंत्र प्रचेता हैं ।
ये विकृतियों के विरोध में खड़े हुए ।
ये अधिकारों के प्रयोग अडे हुए ।।

गीत हमारे मधुर हृदय के रति होते ।
करुणा के संरक्षण में रघुपति होते ।
ये वरवरता के प्रसंग में क्रुद्ध हुए ।
ये जनहित के आंदौलन में युद्ध हुए ।।

जो उद्दंड निडर उनको ये डरा रहे ।
ये अशिष्टता को हस कर के हरा रहे ।
गीत विसंगतियों में अद्भुत बन जाते ।
अत्याचारों पर वीभत्स ये दिखलाते ।।

ये ममता के गोद पुत्रवत होते हैं ।
शांत भक्त के हृदय राम जब सोते हैं ।
गीत हमारे उपमा ,रूपक , श्लेष बने ।
यमक ,वक्र, उत्प्रेक्षा ,अधिक,विशेष बने ।।

भाव , विभाव,तथा अनुभाव भरे इसमें ।
लक्षण ,व्यंजन,गुण ,गति पाव धरे इसमें ।
गीत हमारे छंदों के अनुशासन हैं ।
रति के ये श्रृंगार यती के आशन हैं ।।

@समर्थ

© Sujan Tiwari Samarth