गज़ल- वो एक ही शख्स था।
तारा टूटा तो मिला ही नहीं, आसमां में।
वो एक ही शख्स था, क्या इस जहां में।
तमाम लोग सफ़र में, बिछड़ गए मुझसे
ये किसने लगाई थी आग, मेरे कारवां में।
जिस्म से निकलकर मैं, बस भटकता रहा
जगह न मिल सकी, मुझको दोनों जहां में।
शहंशाह गर होता तो बनवाता मैं भी ताज़
इससे ज्यादा क्या खूबी थी, शाहजहां में।
वो तो मुकद्दर ने मिला दिया, हमको वर्ना
थे जानें कहां तुम, था जानें कहां मैं।
© वरदान
वो एक ही शख्स था, क्या इस जहां में।
तमाम लोग सफ़र में, बिछड़ गए मुझसे
ये किसने लगाई थी आग, मेरे कारवां में।
जिस्म से निकलकर मैं, बस भटकता रहा
जगह न मिल सकी, मुझको दोनों जहां में।
शहंशाह गर होता तो बनवाता मैं भी ताज़
इससे ज्यादा क्या खूबी थी, शाहजहां में।
वो तो मुकद्दर ने मिला दिया, हमको वर्ना
थे जानें कहां तुम, था जानें कहां मैं।
© वरदान