...

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एक नज़्म उनके नाम....
नज़्म लिखी मैंने दास्तान ए मोहब्बत की,
उनका ही ज़िक्र था हर पंक्ति में ;
कलम जब भी उठी कुछ कहने को'
उनका ही ख्याल था मेरे लफ़्ज़ों में।

एक प्यास है बेचैन निगाहों की',
रातों के सोते जगते प्रहरों में ;
मेरे आंखों की लिखी पुस्तक है वो,
पागल हूँ ढूंढ रहा उसे हर पन्ने में।

तस्वीर उकेरी मैंने हुस्न ए उलफ़त की,
उनका ही अक्स नज़र आया हर ज़र्रे में ;
हवा जब भी बही मेरे पास से होकर,
उनकी ही खुश्बू आयी मदमस्त बयारों में।
© pagal_pathik