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ग़ज़ल
ग़ज़ल


सबसे छिपकर, चुपके चुपके अश्क बहाना , अच्छा लगता है
कोई ना जाने, दिल कितना रोया, बातें बनाना, अच्छा लगता है ।

चलते चलते,पीछे मुड़कर देखा, हम दूर निकल आए घर से
शाम ढले घर आ जाना और. शमा जलाना , अच्छा लगता है।

इश्क की वादी और हुस्न के जलवे शर्म आ जाना वाजिब है
ऐसे में अचानक पैरों में ठोकर का ...