...

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हक खातर लड़बो जाणां हां
ई बात री चींत्यां मत करज्यौ, आपां बेठोड़ ठिकांणां हां।
थे बस अती याद राखज्यो, आपां मेळौ भरबौ जाणां हां।

कद तक खूंटै बन्ध्या देखस्यो, कोई भरोटी ल्यार्यो होसी,
अब तो उठो तोड़ द्यो खूंटों, आपां खुद चरबो जांणा हां।

राज है आंधों सुणै भी ऊंचों, ना लिख्यो पढ़े ना बात सुणै,
ऑंख भी खुलसी बहरा सुणसीं, खुड़को करबो जाणां हां।

मांग्यां भीख तो मिल ज्यासी, हक मांग्यां कदै मिल्यो हो के,
अब कटोरा गाळ कृपाण बणा ल्यो आपां लड़बो जाणां हां।

मायड़ भासा, भासा कोनी ? तो पछ म्हे ढांडा ढोर हां के ?
अब आ ढोर जूण दर कोनी मंजूर, मारबो मरबो जाणां हां।

मरुभाषा क्यों खास है देखो, थे लिख्योड़ो इतिहास तो देखो,
थारै पढ़्यां समझ मं आ ज्यासी, म्है ओजूं रचणों जाणां हां।
रचणियां = छगन सिंह जेरठी
© छगन सिंह जेरठी