...

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कोई खास नहीं
कोई तुमसे कौन हूं मैं, तुम कह देना कोई खास नहीं
एक दोस्त है पक्का कच्चा सा,
एक झूठ है आधा सच्चा सा,
जज़्बात से ढका एक पर्दा है ,
एक बहाना कोई अच्छा सा ,एक ऐसा साथी है
जो पास होकर भी पास नहीं ,
कोई तुमसे पूछे कौन हूं मैं, तुम कह देना कोई खास नहीं।

एक साथी जो कुछ अनकही सी बातें कह जाता है,
यादों में जिसका धुंधला सा अक्स रह जाता है,
यूं तो उसके न होने का मुझको कोई गम नहीं,
पर कभी-कभी वह आंखों से आंसू बनकर बह जाता है
यूं तो रहता है मेरे मन में,पर नजरों को उसकी तलाश नहीं
कोई तुमसे पूछे कौन हूं मैं, तुम कह देना कोई खास नहीं।

साथ बन कर वो रहता है, दर्द बांटता जाता है ,
भूलना चाहूं जो उसको वह यादों में छा जाता है।
अकेला महसूस करुं कभी जो,
वह सपनों में आ जाता है ।
मैं साथ खड़ा हूं सदा तुम्हारे, कहकर साहस दे जाता है। ऐसे रहता है मेरे साथ की ,उसकी मौजूदगी का आभास नहीं ,
कोई तुमसे पूछे कौन हूं मैं ,तो कह देना कोई खास नहीं।