...

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कभी मैं भी तुम्हारी दुनियॉं था...
उम्मींदों की ऐसी बस्ती में दो-चार क़दम हम साथ चले थे
रातें कुछ जाग कर काटीं कुछ ख़ो ऑंख़ो में हम भी गए थे
तुम भी तन्हां, तन्हां हम थे कुछ बातों में रह से गए थे
मेरी दुनियॉं तुम थी अपनीं, दुनियॉं तुम्हारी अब हम ना रहे हैं

करते हो काम छुपा कर मुझसे , कहता कुछ हूॅं लड़ने लगते
प्यार-मोहब्बत बातें सारी, अब क्यों लगता है भूल चले थे
उम्मींदों की ऐसी बस्ती में दो-चार क़दम हम साथ चले थे
रातें कुछ जाग कर काटीं कुछ खो ऑंख़ो में हम भी गए थे

जब भी मैं पास तुम्हारे आऊं तुम कहते हो दूर रहो बस !
क्या प्रेम तुम्हारा छूने से है ? मैं...