...

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ऐ जिन्दगी इतना क्यों रुलाए जा रही है..
‘ऐ जिन्दगी इतना क्यों रुलाए जा रही है।
फिर भी क्या आजमाएं जा रही है!!

‘चल तो रहे हैं तुम्हारी ही शर्तों पर
फिर भी क्या समझाए जा रही है!!

‘तेरी ही क़लम की लिखावट है, मेरी
सांसों पर फिर भी क्यों सताए जा रही है!!

‘मैं हार जाऊं तुझ से इसलिए, तूं
हर रोज़ अदालत बैठाए जा रही है!!

‘ऐ जिंदगी है तो तूं मेरी ही
फिर भी क्यों रुलाए जा रही है!!

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