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अर्धरात्रि के ख्याल
कुछ एक बात जो दिल की कहनी है
पर किस से कहूँ
यह किस्सा ज़रा पेचिदा है
घुमा नज़रो के चारो और
कह डाली मैंने
खुद को सारी राम कहानी
जो योजनायें बनाई थी
खुद की सपनों की नीव जो सजाई थी
जो कल के लिए नई आगाज जगाई थी
सूना खुद को ही खुद पीठ थपथपाई थी
तब जाकर सुकून की नींद आई थी।
© preet
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