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मेरी गुरु मेरी मां
माँ मैंने जीवन का पहला अक्षर
तेरे हाथों से लिखना सीखा
माँ मैंने जीवन का पहला खाना तेरे हाथों से खाना सीखा
जीवन के वो पहले कपड़े
मैंने तेरे हाथों से पहने
जब खाई कभी चोट मैने
तेरी चीख ही सबसे पहले निकली
ना जाने कौन सी हवा जाकर तुझे मेरी खबर दे देती
जब भी मैं ग़म में रहता
तुझे मेरी फ़िकर सताती
माँ मैने तेरे ही आँचल के साये में
जीवन में हँसना रोना सीखा
माँ मैंने तेरे ही प्यार की ख़ुश्बू में
जीवन में महकना सीखा
तू अपनी है ये सोचकर मैंने
तेरा दुख कभी ना देखा
पर जब चला मालुम दुःख के दर्द का
तो तेरे लिए मैने रोना सीखा
माँ मैंने तेरे जीने के तरीके से
अपने दुःख को पीना सीखा
माँ मैंने तेरी मर्मत्व की गोद में
खुशियों में जीना सीखा
माँ अगर तू मेरी गुरु ना होती
तो आज पढ़ा लिखा मैं अनपढ़ होता
माँ अगर मैं तेरे लिए कुछ कह सकता हूँ,
तूने मुझे जनम दिया
इसके लिए तुझे शत शत नमन करता हूँ |
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