...

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दूर
#दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
नगर में मृदंग बजा मोह रहा कोई
अधूरे आशियाने के छाव तले सो रहा कोई
धरती के जादू से अनजाना रहा कोई
नदी की धारा संग ओझल हो रहा कोई,
सदियों तक नदियों तक में जूझ रहा कोई,
अधूरे आसमां में अकेला सितारा रहा कोई,
आकाश के चांद सा फसा रहा कोई;
अनंत दिशा को खोज रहा कोई,
दूर अंतरिक्ष में देख रहा कोई;
सदी के अंत को ताक रहा कोई,
आने वाली सदी में झाक रहा कोई;