...

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अपराध्
#अपराध
मन मौन व्रत कर अपराध करता है
किस भांति देखो आघात करता है
व्यंग पर गंभीरता कई प्रहार करता है
आधीनता अपराध की स्वीकार करता है
खुद को छोटा सा समझ किसी का
विस्तार करता है
विस्तार भी ऐसा कि सब को पैर से रौंदे
तोड़ता वो सब चले जो बने हैं घरोंदे
इस तरह की मूक स्वीकृति
जग सिहरता है
रोक लग जाती है जग में
जो निखरता है

© Anil Mishra