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हम फ़िर से मुस्कुराने लगे
ज़िंदगी से ज़्यादा कुछ नहीं चाहा था हमने
सिर्फ़ एक प्यार भरे जीवन के देखते थे हम सपना

ऐसा जीवन जिसमें सब अपने रहते हों साथ
समझे सब बिना स्वार्थ के इक दूजे के जज़्बात

एक शांति से भरपूर ज़िंदगी के सिवा कुछ ना चाहा हमने
वो ही ना मिला हमको, टूट गए सारे सपने

समझ ना सके हम कि हमारा था क्या कसूर
ऐसी दर्द भरी ज़िंदगी जीने के लिए हम क्यूँ हुए मजबूर

पर हम तो हम हैं, हार कैसे मान जाते
ऐसे मायूस रहकर तो हम मर ही जाते

आख़िर सब्र का बाँध हमारा भी टूटा
तोड़ दीं हमने सब जंजीरें, वो पिंजरा हमसे छुटा

अपनी ख़ुद की इक खुशहाल ज़िंदगी का हमने निर्माण किया
वक़्त ने जो हमपे किए सितम, उन्हें हमने भुला दिया

हमारी जीवन की बगिया में भी खुशियों के फूल खिलने लगे
भुलाकर सभी अपने ग़म, हम फ़िर से मुस्कुराने लगे

चाहे खुशियों को हासिल करने में लगी काफ़ी देर
शायद ये कुछ समय का ही था फेर

वक़्त एक सा नहीं रहता ये हमने माना
सब्र का फल होता है मीठा, ये आख़िर हमने पहचाना
© Poonam Suyal
#poonamsuyal