...

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नाकाम कोशिश...!
कितनी बार बचाया हमने
गीतों की बोली लगने से
पर पीड़ा के चौराहे पर
हर कविता नीलाम हुई,
खोए थे सुंदर सपनों में
कब हुई रात पता न चला
जिसके रहने से रहती थी रौनक
कब हुई वीरान पता न चला
खुशबू पीकर तुम महके
रातरानी मेरे...