...

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इबादत
ज़रूरी नहीं
कि हर सज़दों के
लिए इबादतख़ाने हों
ये भी लाज़िमी नहीं
कि दुआओं के लिए
हाथ ही उठाने हों
और ये भी ज़रूरी नहीं
कि पूजा में ईश्वर
के गुण गाने हों
उदाहरण के लिए
सोचो ज़रा
क्या मोहब्बत के
मंदिर होते हैं!
क्या वफ़ाओं के
फ़कीर होते हैं !
क्या दुआओं के घर होते हैं!