एक महिला प्रोफेसर की ज़िंदगी की व्यथा
वैसे तो तू प्रोफेसर है, ज़िन्दगी के सफ़र में अभी फ्रेशर है।
ये सब वक्त की आंख मिचौली है,जो तू मूर्खो को यू झेली है।
वादा कर तू खुद से खुद का,वादे की तू पक्की है।
सब्र रख इंतिहा का, जीत तेरी पक्की है।
सबका है तू आत्मविश्वास, पर तेरा आत्मविश्वास खाली है।
मेरी है तू गीता विश्वास,जो शक्तिमान वाली है।
यहां वक्त ने वक्त को हराया है,तू मेरी चिंता का साया है
तेरा वक्त भी आयेगा, तब शत्रु स्वयं भस्म हो जाएगा।
फिर होगी तू चिंतामुक्त, विजय रथ आगे बढ़ जायेगा।
कर खुद को बुलंद इतना, जलने वाले भी बोले उठे।।
( ये तो औकात से बाहर है )
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MR.SINGH
© MR. SINGH
ये सब वक्त की आंख मिचौली है,जो तू मूर्खो को यू झेली है।
वादा कर तू खुद से खुद का,वादे की तू पक्की है।
सब्र रख इंतिहा का, जीत तेरी पक्की है।
सबका है तू आत्मविश्वास, पर तेरा आत्मविश्वास खाली है।
मेरी है तू गीता विश्वास,जो शक्तिमान वाली है।
यहां वक्त ने वक्त को हराया है,तू मेरी चिंता का साया है
तेरा वक्त भी आयेगा, तब शत्रु स्वयं भस्म हो जाएगा।
फिर होगी तू चिंतामुक्त, विजय रथ आगे बढ़ जायेगा।
कर खुद को बुलंद इतना, जलने वाले भी बोले उठे।।
( ये तो औकात से बाहर है )
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