...

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गुमनाम
जो यहाँ रहते थे अब ना जाने कहा है
जो ये कहते थे कि हम मिलेंगे हर रोज
ना जाने अब उनका बसेरा कहा है....

जिनकी गलियों में हम अक्सर जाया करते थे
दिन के कई घंटे जहा धूप में बिताया करते थे
उनकी रौशनी भी अब नसीब नहीं....
शायद ये मेरी तकदीर नहीं

यादों में है जिनका चेहरा..
अब भी दिल पर है उनका पहरा
उनकी यादगार सही कुछ तो हमारे पास है
बस यही सोच के कि उनका साथ नहीं
मन थोड़ा उदास है....
© VISHAKHA