ग़ज़ल...
सनम! तेरे दम से, जिए जा रहें हैं
मुहब्बत के ग़म से, जिए जा रहें हैं
जिंदा कहाँ हैं हम, तुमसे बिछड़के
मगर बस बेदम से, जिए जा रहें...
मुहब्बत के ग़म से, जिए जा रहें हैं
जिंदा कहाँ हैं हम, तुमसे बिछड़के
मगर बस बेदम से, जिए जा रहें...