अनंत
झुंझ कर अपने अतीत से, कल से,
किसी अनाम सुबह की आशा में,
निकला था वह कुछ सोच कर,
अपने चमकते हुए भविष्य की तलाश में।
फिर ठिठक कर रुक गया,
शायद याद आ गया होगा काँटा...
किसी अनाम सुबह की आशा में,
निकला था वह कुछ सोच कर,
अपने चमकते हुए भविष्य की तलाश में।
फिर ठिठक कर रुक गया,
शायद याद आ गया होगा काँटा...