...

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हम क्यों चुभते है?
खामोश रेहती हु तो अल्फ़ाज़ चुभते है,
दबे दबे से अनगिनत अरमान चुभते है।

हौसले टूट जाते है तो इरादे चुभते है,
हर कोई बेगाना मुझे अब अपने चुभते है।

सलीके से रहे तो उनको मेरे लेहज़े चुभते है,
बेपरवाह बनू तो मेरे हर अंदाज़ चुभते है।

कोई क्या मुकम्मल करेगा मुझे अपना के
हम अधूरे है और आप पूरे तभी चुभते है।


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