...

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क़ीमत ...

हां सही कहा !
अख़िर औकात ही क्या है मेरी
सुबह की चाय से
रात के खाने तक का सफ़र
हाथ  जलने से
पैंर फटने तक का सफ़र
सबको खुशी देने का सफ़र
यहां फिर उस घड़ी की सुई का सफ़र
जो सिर्फ बिन रुके चलना जानती है
थमना नहीं
या फिर सबकी मनोदशा
को समझना और ठलने तक का सफ़र

अब मैं पूछना चाहती हुं
मैं क्यों ही समझूं
क्या तुमने
कभी अपने दिए...