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मंजर अकेलेपन का
फिर अकेला सा लगने लगा हूँ
खामोशी के अंधेरे में सिमटने लगा हूँ
लगता है जैसे कोई पास नहीं है
साथ होते हुए भी कोई साथ नहीं है
बातें खत्म सी हो गयी हैं
अब तो चुपचाप पड़ा रहता हूँ
आँखों में मेरे नमी नहीं दिखेगी
हर पल में लेकिन, सौ बार रोया करता हूँ
जाने क्यूँ घबरा जाता हूँ
अकेलेपन के काले साये से
परायों में कभी, कुछ लगते अपने
कभी अपनों में ,कुछ लगते पराये से
ऐसी खामोशी छाई क्यूँ है ?
हर तरफ तन्हाई क्यूँ है ?
ऐसा मंजर कब तलक दिखेगा मुझे ?
कब कोई आकर अपना कहेगा मुझे ?
कब कोई आकर अपना कहेगा मुझे ?
#the_unauthorised_author
#Rohit'sPoetry
© the_unauthorised_author
खामोशी के अंधेरे में सिमटने लगा हूँ
लगता है जैसे कोई पास नहीं है
साथ होते हुए भी कोई साथ नहीं है
बातें खत्म सी हो गयी हैं
अब तो चुपचाप पड़ा रहता हूँ
आँखों में मेरे नमी नहीं दिखेगी
हर पल में लेकिन, सौ बार रोया करता हूँ
जाने क्यूँ घबरा जाता हूँ
अकेलेपन के काले साये से
परायों में कभी, कुछ लगते अपने
कभी अपनों में ,कुछ लगते पराये से
ऐसी खामोशी छाई क्यूँ है ?
हर तरफ तन्हाई क्यूँ है ?
ऐसा मंजर कब तलक दिखेगा मुझे ?
कब कोई आकर अपना कहेगा मुझे ?
कब कोई आकर अपना कहेगा मुझे ?
#the_unauthorised_author
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